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Thursday, March 19, 2009

कैसे-कैसे चाँद मुहम्मद? बताइए ना...!

क्यों गुरू...! टीवी पर कुछ देखा?
हाँ, फ़िजा ने चाँद मोहम्मद की जिन्दगी बदल दी।
बदल क्या दी, बर्बाद कर दी।
लेकिन बर्बाद तो खुद भी हो गयी?
वो तो बर्बाद थी ही। कौन जानता था उसे...?
बड़े शिकार पर हाथ डाला लेकिन धोखा खा गयी।
तो क्या उसे नेता ही मिला था?
चालाक थी जी, तबतक छूने नहीं दिया होगा जबतक शादी न हो जाय।
चन्द्र मोहन तो deputy CM की कुर्सी से गिर पड़ा उस माल के चक्कर में।
बेवकूफ़ लगता है जी।
और क्या?
हाँ यार, लंगोट के ढीले तो और भी हैं राजनीति में... लेकिन मैनेज कर लेते हैं। यही कच्चा निकला।
तुम उस कारसेवक मुख्य मन्त्री की बात कर रहे हो क्या?
अरे नहीं यार, वो कहाँ मैनेज कर पाया। वह भी तो उस पार्षद के चक्कर में अपना कबाड़ा निकलवा चुका...
तो क्या वो पहलवान मास्टर मैनेज कर रहे हैं...?
उसको भी सभी जान गये हैं। इसकी वाली तो दूसरी जोरू बनकर बच्चा भी पैदा कर चुकी है...
गड़बड़ तो भ्रमर सिंह ने शुरू की है...
हाँ, इसे तो सभी पुराने समाजवादी दल्लाल कहने लगे हैं।
इसने जब से पहलवान को मैनेज करना शुरू किया है तबसे धरती पुत्र भी बॉलीवुड की सुन्दरियों में ज्यादा रम गये हैं।
सुना था भ्रमर सिंह किसी पुरानी बेइज्जती का बदला निकाल रहे हैं।
यह सही है, मैने सुना है कि उसके बेटे और भाई ने कमरा बन्द करके इसको जूतों से मारा था।
तभी से इसने कसम खा ली कि इस समाजवादी परिवार को बर्बाद करके दम लूंगा..।
यार, बात सही लगती है। रास्ता तो उसने यही दिखाया है...
तो फिर कांग्रेस ही ठीक बची है... क्यों?
धत्‌! नेहरू को भूल गये क्या? मैडम एड्‌वीना के लिए इन्होंने क्या-क्या नहीं किया।
लेकिन उन्होंने तो माउण्टबेटन से देश की आजादी जल्दी करा लेने में अपनी लंगोटिया दोस्ती का लाभ उठा लिया।
इसका मतलब तो कांग्रेस की नींव में ही आशनाई और प्यार मोहब्बत का खेल है ..
और क्या? गान्धी परिवार में किसी की नॉर्मल शादी हुई क्या?
सबने अपने पार्टनर को दूसरी जाति या पराये पन्थ से उड़ाया..
इन्दिरा जी ने पारसी से, संजय ने पंजाबी से, राजीव गान्धी तो खुद ही ईसाई बन गये। प्रियंका का पति वो बढ़ेरा ...
ये कौन जात का है?
पता नहीं...।
राहुल को तो कोई ढूढे नहीं मिल रही है।
सोच रहा होगा कुछ नया करने को...। किसी दूसरे ग्रह से लाएगा शायद,...
अरे यार नेहरू गजब का स्मार्ट था... लड़कियाँ मरती होंगी उसपर
राहुल पर कोई नहीं मरी?
लेकिन वाजपेयी जी तो गजब कर गये। कोई माई का लाल उंगली नहीं उठा सकता...।
क्या बकते हो...? उन्होंने तो खुद ही कह दिया था कि मैं कुँवारा हूँ लेकिन ब्रह्मचारी नहीं हूँ।
यह तो बड़ी ईमानदारी की बात है भाई।
तो चाँद मुहम्मद ने ही कौन चोरी की है? सबको बताकर तो किया?
लेकिन वह अनाड़ी निकला न।
शादी करने की क्या जरूरत थी। वैसे ही रख लेता...।
हाँ यार, कितने मन्त्री तो रखते हैं।
यू.पी. के एक मन्त्री जी किसी मास्टरनी के पीछे बदनाम होने लगे तो उसे उड़वा ही दिया ...

बात इसके आगे भी बढ़ी होगी लेकिन मेरा स्टेशन आ गया और मैं गाड़ी से उतर गया। मन कर रहा था कि दो-चार स्टेशन आगे तक चला जाऊँ और भारतीय राजनीति के कुछ और चाँद मुहम्मद लोगों के बारे में जान लूँ। पर बेटिकट पकड़े जाने का डर था सो उतर आया हूँ।

अब सोचता हूँ, आपलोगों से कहूँ। अपने-अपने इलाके के चाँद मुहम्मदों के बारे में बताइए। ऊपर चर्चा कर रहे रेलयात्रियों का नाम भी मुझे नहीं मालूम। आपका परिचय जानने में भी मुझे खास रुचि नहीं है। बस ऐसे महारथियों के बारे में खुलकर बताइए जो अपना ‘
लिबिडो’ (libido) सम्हालकर रखने के बजाय अपनी सामाजिक और राजनैतिक छवि भी दाँव पर लगाकर इस लिप्साकुण्ड में कूद गये हैं। नाम लेना जरूरी नहीं है। बस कारनामों का खुलासा करिए। सुप्रीम कोर्ट से डरना तो पड़ेगा भाई।

Tuesday, March 17, 2009

कैसे-कैसे चाँद मुहम्मद...?

क्यों गुरू...! टीवी पर कुछ देखा?
हाँ, फ़िजा ने चाँद मोहम्मद की जिन्दगी बदल दी।
बदल क्या दी, बर्बाद कर दी।
लेकिन बर्बाद तो खुद भी हो गयी?
वो तो बर्बाद थी ही। कौन जानता था उसे...?
बड़े शिकार पर हाथ डाला लेकिन धोखा खा गयी।
तो क्या उसे नेता ही मिला था?
चालाक थी जी, तबतक छूने नहीं दिया होगा जबतक शादी न हो जाय।
चन्द्र मोहन तो deputy CM की कुर्सी से गिर पड़ा उस माल के चक्कर में।
बेवकूफ़ लगता है जी।
और क्या?
हाँ यार, लंगोट के ढीले तो और भी हैं राजनीति में... लेकिन मैनेज कर लेते हैं। यही कच्चा निकला।
तुम उस कारसेवक मुख्य मन्त्री की बात कर रहे हो क्या?
अरे नहीं यार, वो कहाँ मैनेज कर पाया। वह भी तो उस पार्षद के चक्कर में अपना कबाड़ा निकलवा चुका...
तो क्या वो पहलवान मास्टर मैनेज कर रहे हैं...?
उसको भी सभी जान गये हैं। इसकी वाली तो दूसरी जोरू बनकर बच्चा भी पैदा कर चुकी है...
गड़बड़ तो भ्रमर सिंह ने शुरू की है...
हाँ, इसे तो सभी पुराने समाजवादी दल्लाल कहने लगे हैं।
इसने जब से पहलवान को मैनेज करना शुरू किया है तबसे धरती पुत्र भी बॉलीवुड की सुन्दरियों में ज्यादा रम गये हैं।
सुना था भ्रमर सिंह किसी पुरानी बेइज्जती का बदला निकाल रहे हैं।
यह सही है, मैने सुना है कि उसके बेटे और भाई ने कमरा बन्द करके इसको जूतों से मारा था।
तभी से इसने कसम खा ली कि इस समाजवादी परिवार को बर्बाद करके दम लूंगा..।
यार, बात सही लगती है। रास्ता तो उसने यही दिखाया है...
तो फिर कांग्रेस ही ठीक बची है... क्यों?
धत्‌! नेहरू को भूल गये क्या? मैडम एड्‌वीना के लिए इन्होंने क्या-क्या नहीं किया।
लेकिन उन्होंने तो माउण्टबेटन से देश की आजादी जल्दी करा लेने में अपनी लंगोटिया दोस्ती का लाभ उठा लिया।
इसका मतलब तो कांग्रेस की नींव में ही आशनाई और प्यार मोहब्बत का खेल है ..
और क्या? गान्धी परिवार में किसी की नॉर्मल शादी हुई क्या?
सबने अपने पार्टनर को दूसरी जाति या पराये पन्थ से उड़ाया..
इन्दिरा जी ने पारसी से, संजय ने पंजाबी से, राजीव गान्धी तो खुद ही ईसाई बन गये। प्रियंका का पति वो बढ़ेरा ...
ये कौन जात का है?
पता नहीं...।
राहुल को तो कोई ढूढे नहीं मिल रही है।
सोच रहा होगा कुछ नया करने को...। किसी दूसरे ग्रह से लाएगा शायद,...
अरे यार नेहरू गजब का स्मार्ट था... लड़कियाँ मरती होंगी उसपर
राहुल पर कोई नहीं मरी?
लेकिन वाजपेयी जी तो गजब कर गये। कोई माई का लाल उंगली नहीं उठा सकता...।
क्या बकते हो...? उन्होंने तो खुद ही कह दिया था कि मैं कुँवारा हूँ लेकिन ब्रह्मचारी नहीं हूँ।
यह तो बड़ी ईमानदारी की बात है भाई।
तो चाँद मुहम्मद ने ही कौन चोरी की है? सबको बताकर तो किया?
लेकिन वह अनाड़ी निकला न।
शादी करने की क्या जरूरत थी। वैसे ही रख लेता...।
हाँ यार, कितने मन्त्री तो रखते हैं।
यू.पी. के एक मन्त्री जी किसी मास्टरनी के पीछे बदनाम होने लगे तो उसे उड़वा ही दिया ...

बात इसके आगे भी बढ़ी होगी लेकिन मेरा स्टेशन आ गया और मैं गाड़ी से उतर गया। मन कर रहा था कि दो-चार स्टेशन आगे तक चला जाऊँ और भारतीय राजनीति के कुछ और चाँद मुहम्मद लोगों के बारे में जान लूँ। पर बेटिकट पकड़े जाने का डर था सो उतर आया हूँ।

अब सोचता हूँ, आपलोगों से कहूँ। अपने-अपने इलाके के चाँद मुहम्मदों के बारे में बताइए। ऊपर चर्चा कर रहे रेलयात्रियों का नाम भी मुझे नहीं मालूम। आपका परिचय जानने में भी मुझे खास रुचि नहीं है। बस ऐसे महारथियों के बारे में खुलकर बताइए जो अपना ‘
लिबिडो’ (libido) सम्हालकर रखने के बजाय अपनी सामाजिक और राजनैतिक छवि भी दाँव पर लगाकर इस लिप्साकुण्ड में कूद गये हैं। नाम लेना जरूरी नहीं है। बस कारनामों का खुलासा करिए। सुप्रीम कोर्ट से डरना तो पड़ेगा भाई।